अनूठा मौन संवाद
चीन
के एक छोटे से कस्बे में रहता था ली ची। अपने से छोटे-बड़े, सबकी मजाक उड़ाता
रहता। एक दिन गांव के कुछ लोगों ने से चुनौती दी, ‘अगर तुम अपने आपको इतना ही
होशियार मानते हो तो मठ में रहने वाला एक आंख वाले भिक्षु को शास्त्रार्थ में
हराकर दिखाओ।’
‘अरे,
इसमें कौन सी बड़ी बात है ॽ’ ली ची ने बड़ी शान और
अहंकार के साथ कहा।
संयोग
की बात है कि भिक्षु उसी समय उधर से आ निकले। ली ची बड़े उत्साह के साथ भिक्षु के
सामने जाकर खड़ा हो गया। उसने भिक्षुक को एक अंगुली दिखाई। भिक्षु के चेहरे पर जरा
सा तनाव दिखा, उन्होंने ली ची को दो अंगुलियां दिखाई। अब ली ची ने उन्हें तीन
अंगुलियां दिखा दीं। भिक्षु के चेहरे पर क्रोध स्पष्ट नजर आ गया। उन्होंने उसे
मुक्का तान कर दिखा दिया। ली ची बुरी तरह से डर गया। वह वहां से सरक लिया। भिक्षु
भी अपनी राह चले गए। ली ची ग्रामीणों के पास आया।
उसने
कहा, ‘भिक्षु सचमुच बड़े ही होशियार और चतुर हैं। फिर भी देखो, मैंने उन्हें इशारे
से सारी बात कही और जो उन्होंने कही, वे भी समझ लीं।’
ग्रामीण
उत्सुकतावश पूछने लगे, ‘पर हमें यह बताओ कि तुम लोग आखिर क्या बात कर रहे थेॽ’ ‘मैंने उन्हें एक अंगुली दिखाई, इसका मतलब था
कि हमें एकमात्रबुद्ध का ही सहारा है। भिक्षु ने दो अंगुलियां दिखाईं। वह कहना चाहते
थे कि बुद्ध और उनके उपदेश दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
ली ची ने समझाया। ‘अच्छा! ग्रामीण उत्सुकतापूर्वक उसकी बातें सुन रहे थे।
उनमें से एक ने कहा, ‘तुमने जो तीन अंगुलियां दिखाईं, उनका क्या मतलब थाॽ’
‘मैंने
उनसे कहा कि बुद्ध, उनके उपदेश और संघ तीनों का एक ही महत्व है।’ ‘और, उन्होंने जो
मुक्का दिखायाॽ’ ‘भिक्षु का कहना था कि आखिर तीनों एक ही तो
है।’ ली ची ने उन्हें समझाया।
तभी
एक ग्रामीण ने वहां उपस्थित सब लोगों को सुझाव दिया, ‘क्यों न हम भिक्षु से ही इन
बातों का मतलब जानें। वे मठ में गए भिक्षु वहां पर आसन पर बैठकर भोजन
कर रहे थे। ग्रामीण उन्हें प्रणाम कर एक ओर बैठ गए। भोजन करने के बाद भिक्षु ने
कहा, ‘बोलो, क्या बात है, मठ में कैसे आना हुआॽ एक ग्रामीण ने कहा, ‘आप और ली ची के बीच कुछ समय पहले जो मूक संवाद हुआ था,
उसके बारे में जानने की उत्सुकता थी।’
भिक्षु की भौंहें तन
गई। बोले, ‘तो उस दुष्ट का नाम ली ची है। वो सामने दिख जाए तो डंडे से अभी उसका
सिर फोड़ दूं। उसने मेरी एक आंख का मजाक उड़ाते हुए मेरी तरफ एक अंगुली दिखाई, तो मैंने कहा तुम्हारी तो दोनों आंखें हैं ना! तुम्हें किसी का
मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। पर उस दुष्ट ने मुझे तीन अंगुलियां दिखाईं और छेड़ा कि हम
दोनों की कुल मिलाकर तीन आंखें ही हैं। बस इसी बात में मैं भड़क रहा। मैंने मुक्का
तानकर से धमकाया कि वह अब भी चुप नहीं रहा और मेरे सामने से नहीं हटा तो मैं
मुक्का से उसके नाक तोड़ दूंगा। बस, फिर क्या था, वह तुरंत वहां से चला गया।’
भिक्षु
की बात सुनकर सभी ग्रामीण बहुत हंसे। ली ची को असली बात का पता चला तो वह शर्मिंदा
हो गया।