Monday, 13 October 2014



अनूठा मौन संवाद

      चीन के एक छोटे से कस्बे में रहता था ली ची। अपने से छोटे-बड़े, सबकी मजाक उड़ाता रहता। एक दिन गांव के कुछ लोगों ने से चुनौती दी, ‘अगर तुम अपने आपको इतना ही होशियार मानते हो तो मठ में रहने वाला एक आंख वाले भिक्षु को शास्त्रार्थ में हराकर दिखाओ।’
      ‘अरे, इसमें कौन सी बड़ी बात है ’ ली ची ने बड़ी शान और अहंकार के साथ कहा।
      संयोग की बात है कि भिक्षु उसी समय उधर से आ निकले। ली ची बड़े उत्साह के साथ भिक्षु के सामने जाकर खड़ा हो गया। उसने भिक्षुक को एक अंगुली दिखाई। भिक्षु के चेहरे पर जरा सा तनाव दिखा, उन्होंने ली ची को दो अंगुलियां दिखाई। अब ली ची ने उन्हें तीन अंगुलियां दिखा दीं। भिक्षु के चेहरे पर क्रोध स्पष्ट नजर आ गया। उन्होंने उसे मुक्का तान कर दिखा दिया। ली ची बुरी तरह से डर गया। वह वहां से सरक लिया। भिक्षु भी अपनी राह चले गए। ली ची ग्रामीणों के पास आया।
      उसने कहा, ‘भिक्षु सचमुच बड़े ही होशियार और चतुर हैं। फिर भी देखो, मैंने उन्हें इशारे से सारी बात कही और जो उन्होंने कही, वे भी समझ लीं।’
      ग्रामीण उत्सुकतावश पूछने लगे, ‘पर हमें यह बताओ कि तुम लोग आखिर क्या बात कर रहे थे’ ‘मैंने उन्हें एक अंगुली दिखाई, इसका मतलब था कि हमें एकमात्रबुद्ध का ही सहारा है। भिक्षु ने दो अंगुलियां दिखाईं। वह कहना चाहते थे कि बुद्ध और उनके उपदेश दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण है। ली ची ने समझाया। ‘अच्छा! ग्रामीण उत्सुकतापूर्वक उसकी बातें सुन रहे थे। उनमें से एक ने कहा, ‘तुमने जो तीन अंगुलियां दिखाईं, उनका क्या मतलब थाॽ’
      ‘मैंने उनसे कहा कि बुद्ध, उनके उपदेश और संघ तीनों का एक ही महत्व है।’ ‘और, उन्होंने जो मुक्का दिखाया’ ‘भिक्षु का कहना था कि आखिर तीनों एक ही तो है।’ ली ची ने उन्हें समझाया।
      तभी एक ग्रामीण ने वहां उपस्थित सब लोगों को सुझाव दिया, ‘क्यों न हम भिक्षु से ही इन बातों का मतलब जानें वे मठ में गए भिक्षु वहां पर आसन पर बैठकर भोजन कर रहे थे। ग्रामीण उन्हें प्रणाम कर एक ओर बैठ गए। भोजन करने के बाद भिक्षु ने कहा, ‘बोलो, क्या बात है, मठ में कैसे आना हुआ एक ग्रामीण ने कहा, ‘आप और ली ची के बीच कुछ समय पहले जो मूक संवाद हुआ था, उसके बारे में जानने की उत्सुकता थी।’
      भिक्षु की भौंहें तन गई। बोले, ‘तो उस दुष्ट का नाम ली ची है। वो सामने दिख जाए तो डंडे से अभी उसका सिर फोड़ दूं। उसने मेरी एक आंख का मजाक उड़ाते हुए मेरी तरफ एक अंगुली दिखाई, तो मैंने कहा तुम्हारी तो दोनों आंखें हैं ना! तुम्हें किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। पर उस दुष्ट ने मुझे तीन अंगुलियां दिखाईं और छेड़ा कि हम दोनों की कुल मिलाकर तीन आंखें ही हैं। बस इसी बात में मैं भड़क रहा। मैंने मुक्का तानकर से धमकाया कि वह अब भी चुप नहीं रहा और मेरे सामने से नहीं हटा तो मैं मुक्का से उसके नाक तोड़ दूंगा। बस, फिर क्या था, वह तुरंत वहां से चला गया।’
      भिक्षु की बात सुनकर सभी ग्रामीण बहुत हंसे। ली ची को असली बात का पता चला तो वह शर्मिंदा हो गया।

Monday, 6 October 2014

परोपकारी की जीत



परोपकारी की जीत

चीन में क्यांग नामक बेहद गरीब मगर ईमानदार युवक रहता था। क्यांग एक अमीर की पशुशाला मे काम करता था। वहां पलने वाले घोड़ों, गाय, ऊंटों आदि जानवरों की वह जी जान से देखभाल करता। दोपहर में या रात को कुछ वक्त मिलता, तो वह चित्र बनाने बैठ जाता। चित्र बनाना उसे बड़ा अच्छा लगता था। तनख्वाह तो उसे बहुत कम मिलती थी, पर वह अपना काम चला लेता था।
      एक रात क्यांग पेंटिंग बनाते-बनाते सो गया। सपने में उसने देखा कि किसी संतपुरूष ने उसे एक बड़ी सी ब्रुश देते हुए कहा, ‘इससे गरीबों की मदद करना।’ सुबह उठने पर क्यांग ने सचमुच एक ब्रुश अपने सिरहाने रखा पाया। क्यांग बड़ा खुश हुआ। उसने ब्रुश से एक कमल का फूल बना डाला। देखते ही देखते वहां असली कमल का फूल उत्पन्न हो गया। क्यांग समझ गया कि इस चमत्कारी ब्रुश से जो कुछ बनाया जाएगा, वह सचमुच सामने आ जाएगा।
      उस दिन से क्यांग किसी भी गरीब को भूखा देखता, तो ब्रश से फल, रोटी, सब्जी आदि बना डालता, वस्त्रहीन व्यक्ति को देखता तो कपड़ों की तस्वीर बना देता, बीमार को देखता, तो औषधि का चित्र बना देता... सारी चीजें वास्तविक रूप में उपस्थित हो जातीं और असहाय लोगों की जरूरतें पूरी हो जातीं। कई बार वह देखता कि कोई मेहनतकश किसान अपने खेत मे पानी न होने से परेशान है, तो कुआं बना देता, किसी के पास बैल न होने से जुताई में दिक्कत आती तो बैल बना देता। धीरे-धीरे क्यांग की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
      क्यांग के मालिक को भी उसके जादुई ब्रश का पता चल गया। उसने क्यांग के ब्रश की मदद से अपनी धन-संपदा बढ़ाने की सोची। वह जानता था कि इस ब्रुश से जो कुछ बनाया जाएगा, वह वास्तविक रूप में उपस्थित हो जाएगा। उसने तलवार की नोक पर जबरदस्ती क्यांग से एक सोने का पहाड़ बनाने को कहा ताकि वह उससे सोना ले सके। क्यांग ने पहले समुद्र बनाया फिर उसके बीचों-बीच सोने का पहाड़ बना दिया। क्यांग का मालिक गुस्सा हो गया। बोला, मैं समुद्र के बीच में जाऊंगा कैसे ज्यादा होशियारी मत दिखाओ। अब एक बड़ा सा जहाज भी बनाओ।’ क्यांग ने मजबूरीवश बड़ा सा जहाज बना दिया। धूर्त अमीर अपने परिवार एवं बंधु-बांधवों के साथ जहाज मे बैठकर रवाना हो गया।

      ताकि सब मिलकर ज्यादा से ज्यादा सोना बटोर सकें। लेकिन वह मूर्ख अति उत्साह में ब्रश क्यांग के पास ही छोड़ गया। जहाज जैसे ही समुद्र के बीच पहुंचा , क्यांग ने समृद्ध में विशाल लहरें बना दीं और तेज तूफान भी। देखते ही देखते यह दृश्य भी जीवंत हो उठा और दुष्ट अमीर अपने परिवार एवं मित्रों सहित समृद्ध की गहराइयों में कहीं खो गया। उसका साम्राज्य क्यांग को मिल गया। लेकिन वह जादुई ब्रश से अब भी गरीबों की दिल खोलकर कर मदद करता रहा।